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Category:
Music
Music of Asia
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Date Created: 2018-09-06
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Date Updated: 2024-02-18
Audience activity: 71
Views per video: 283
✴️ मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्ठलोष्ठसमं क्षितौ ।
विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति ॥
" मृत शरीर को छोड़कर जैसे लकड़ी के टुकड़े चले जाते हैं, वैसे संबंधी भी मुँह फेरकर चले जाते हैं । केवल धर्म ही मनुष्य के पीछे जाता है "
✴️ आहार, निद्रा, भय और मैथुन – ये तो इन्सान और पशु में समान है । इन्सान में विशेष केवल धर्म है, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य है ।
"आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।
धर्मो हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥
✴️ लोगों को धर्म का फल चाहिए, पर धर्म का आचरण नहि ! और पाप का फल नहि चाहिए, पर गर्व से पापाचरण करना है !
"धर्मस्य फलमिच्छन्ति धर्मं नेच्छन्ति मानवाः ।
फलं पापस्य नेच्छन्ति पापं कुर्वन्ति सादराः ॥
✴️ धर्म माता की तरह हमें पुष्ट करता है, पिता की तरह हमारा रक्षण करता है, मित्र की तरह खुशी देता है, और सम्बन्धियों की भाँति स्नेह देता है ।
"धर्मो मातेव पुष्णानि धर्मः पाति पितेव च ।
धर्मः सखेव प्रीणाति धर्मः स्निह्यति बन्धुवत् ॥
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