लफ़्ज ना होते तो शायद दुनिया अपनी बात ना कह पाती। फिर चाहे शायरी हो कविताएं हों शेर हो या फिर साहित्य। वो लब्ज़ ही हैं जो हमें कुछ कहने का ज़रिया देते हैं।